साहस और समझौते का मूल्य

एक दिन राजा हरिकेश को पास के राज्य से रात्रिभोज का न्योता मिला। राजा ने यह सोचकर न्योता अस्वीकार कर दिया कि पड़ोसी राज्य के लोग विदेशी हैं और उनके इस निमंत्रण के पीछे कोई गलत इरादा हो सकता है।

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value of courage and compromise hindi moral story

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साहस और समझौते की कहानी

एक दिन राजा हरिकेश को पास के राज्य से रात्रिभोज का न्योता मिला। राजा ने यह सोचकर न्योता अस्वीकार कर दिया कि पड़ोसी राज्य के लोग विदेशी हैं और उनके इस निमंत्रण के पीछे कोई गलत इरादा हो सकता है। रानी सुंदरी ने इस संकीर्ण सोच को बदलने और पड़ोसी राज्य को एक सबक सिखाने के लिए एक योजना बनाई।

इस योजना का आधार एक कहानी थी, जिसमें सेनापति वीरेंद्र (सिंदबाद) मुख्य पात्र थे। वीरेंद्र, एक महान योद्धा और नौसेना प्रमुख थे, लेकिन उन्हें विदेशियों से नफरत थी। वे मानते थे कि विदेशी उनके राज्य के खिलाफ साजिश रचते हैं।

रानी का समझौता प्रस्ताव

रानी सुंदरी ने पड़ोसी राज्य के राजा को समझौते के लिए आमंत्रित किया। विभिन्न राज्यों के राजा एकत्र हुए और रानी ने संयुक्त समझौते की घोषणा की। इसके तहत, वे लोग पास के काशी और उज्जैन के कुछ हिस्सों पर अधिग्रहण करने की योजना बनाने लगे। इस समझौते से पड़ोसी राजा खुश हो गए, लेकिन वीरेंद्र को यह विदेशी राजा की चाल लगी।

वीरेंद्र की गलती

वीरेंद्र ने रानी की सलाह को अनसुना करते हुए, पड़ोसी राज्य के एक जहाज पर हमला कर दिया। यह कदम पड़ोसी राजा को नाराज कर गया, और उन्होंने समझौता तोड़ने की घोषणा कर दी। रानी ने वीरेंद्र को दंडित करते हुए उनके सारे अधिकार छीन लिए और उनके जहाज भी जब्त कर लिए।

वीरेंद्र की कठिन परीक्षा

अपमानित वीरेंद्र और उनके सहायक धर्मेंद्र (डोन्याजद) को राज्य छोड़कर जाना पड़ा। उन्हें एक गांव में एक महिला के पास काम मिला। दोनों को बर्तन धोने और झाड़ू लगाने का काम दिया गया, लेकिन उनके अनुभव की कमी के कारण वे इसे सही ढंग से नहीं कर सके। महिला ने उन्हें सर्कस में काम करने का दूसरा मौका दिया।

साहस की जीत

एक दिन सर्कस के दौरान, अचानक एक दरिंदा शेर भीड़ में घुस आया और रानी को अगवा कर लिया। वीरेंद्र और धर्मेंद्र ने अपनी जान की परवाह किए बिना रानी को बचाने के लिए साहस दिखाया। उन्होंने शेर से लड़ाई की और रानी को बचा लिया।

समाप्ति और सीख

रानी उनकी बहादुरी से इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने वीरेंद्र को उनका काम और अधिकार वापस देने का फैसला किया। हालांकि, एक शर्त रखी कि वीरेंद्र अपना जहाज राज्य से दूर चलाएंगे ताकि उनकी संकीर्ण सोच राज्य के विकास में बाधा न बने।

कहानी की सीख:

यह कहानी हमें सिखाती है कि पूर्वाग्रह और अनावश्यक शंका हमें गलत फैसले लेने पर मजबूर कर सकती है। अपने नजरिए को बदलकर और दूसरों के प्रति विश्वास रखकर ही हम सच्ची सफलता और सम्मान पा सकते हैं।

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